प्रम्लोचा अप्सरा मंत्र साधना अटूट ऊर्जा Pramlocha Apsara
प्रम्लोचा अप्सरा अटूट सेक्सुअल ऊर्जा

ऋषि कंडू के लगातार 907 सालों तक संभोग करने का राज जब कभी वेद और पुराणों में अप्सराओं का जिक्र किया जाता है तब स्वर्ग के देवता इंद्र का नाम जरूर आता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान इंद्र अपने काम को निकलवाने के लिए हमेशा छल कपट का सहारा लिया करते थे।
छल कपट का सहारा लेने वाले भगवान इंद्र ने एक बार ऋषियों में से सर्वश्रेष्ठ ऋषि कंडु की तपस्या को भंग करने के लिए एक अत्यंत सुंदर अप्सरा प्रम्लोचा को ऋषि कंडु के पास उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा।
ऋषि कंडु के पास जाने के बाद प्रम्लोचा ने अपनी नैन नक्श से ऋषि कंडु को सम्मोहित कर लिया। प्रम्लोचा के सम्मोहन में फंसने के बाद ऋषि कंडु ने प्रम्लोचा के साथ लगातार 907 साल तक शारीरिक संबंध बनाए। अब आप सोच रहे होंगे कि 907 साल तक लगतार ऋषि कंडु ने संभोग कैसे किया।
प्रम्लोचा के सम्मोहन में फंसने के बाद ऋषि कंडु पूजा-पाठ और तपस्या को भूलकर गृहस्थ जीवन के मोह माया में फंस गए। गृहस्थ जीवन के मोह माया में फंसने की वजह से उनके द्वारा की जा रही कड़ी तपस्या को भी खतरा होने लगा । योजना के अनुसार अपने काम करने के बाद प्रम्लोचा वापस स्वर्ग लौटना चाहती थी। परंतु सम्मोहन की वजह से ऋषि कंडु उनमे इस तरह डूब गए कि वह प्रम्लोचा को अपने पास से जाने ही नहीं देना चाहते थे। प्रम्लोचा भी ऋषि कंडु के श्राप से बहुत ज्यादा डरती थी जिसकी वजह से वह चाहकर भी उनसे दूर नहीं जा रही थी। परंतु एक दिन अचानक ऋषि कंडु को अपनी पूजा-पाठ और तपस्या की याद आ गई जिसके बाद उन्होंने प्रम्लोचा से कहा कि वह पूजा पाठ करने के लिए जा रहे हैं। उसी दौरान प्रम्लोचा ने उन्हें यह जवाब दिया कि कई साल गृहस्थ जीवन गुजारने के बाद अब आपको अब साधना की सूझी है।
प्रम्लोचा के द्वारा दिए गए इस जवाब को सुनने के बाद ऋषि कंडु ने बोला कि तुम तो सुबह ही आई हो और मुझे मेरी साधना और तपस्या के बारे में बता रही हो। जिसके बाद प्रम्लोचा ने ऋषि कंडु को भगवान इंद्र के चाल के बारे में बताया और उन्होंने ऋषि को यह बात भी बताई कि उसे इस धरती पर आए हुए पूरे 907 साल गुजर चुके हैं।
प्रम्लोचा के द्वारा कही गई इस बात को सुनने के बाद ऋषि को खुद के ऊपर विश्वास नहीं हुआ और अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने उस अप्सरा को त्याग कर फिर से पहले की तरह ही तपस्या और साधना करने में लीन हो गए। कुछ इस तरह ऋषि कंडु 907 साल तक एक अप्सरा के साथ संभोग करते रहे।
Kandu PramLocha Tantra
प्रेम लोचना काण्डु मंत्र तंत्र साधना
PremLochana Kandu Tantra
प्रम लोचना काण्डु अप्सरा साधना : शास्त्रों के अनुसार देवराज इंद्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं मुख्य रूप से बताई गई हैं। इन सभी अप्सराओं का रूप बहुत ही सुंदर बताया गया है। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, मेनका , प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्मा। वेद-पुराण में कई स्थानों में इन अप्सराओं के नाम आए हैं, जहां इन्होंने घोर तपस्या में लीन भक्तों के तप को भी भंग कर दिया। नारायण की जंघा से मेनका की उत्पत्ति मानी जाती है। पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था।
श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुन्दर अप्सरा थी।शास्त्रों में कई स्थानों पर अप्सराओं का उल्लेख आता है।साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें।
रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है।
विधि : पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री प्रेम लोचना काण्डु यंत्र माला अपने सामने रख लें। बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे) ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥ (अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें) ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥ (अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥ संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले। मैं ……..अमुक……… गोत्र मे जन्मा,……… ………. यहाँ आपके पिता का नाम………. ……… का पुत्र ………………………..यहाँ आपका नाम…………………, निवासी…………………..आपका पता………………………. आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी प्रेम लोचना काण्डु
की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी अप्सरा प्रेम लोचना काण्डु के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें। जल और सामग्री को छोड़ दे।
गणपति का पूजन करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो। सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते ॐ श्री गायत्र्यै नमः।
ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधि पतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः।
ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं। दोनो हाथो को मिलाकर और फैला लो।
साथ ही साथ
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं अप्सरा प्रेम लोचना आगच्छ आगच्छ स्वाहा”
मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं। हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं। आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती।
ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम। इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।
ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः। मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि
ॐ प्रेम लोचना काण्डु अप्सरायै नमः गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि।
ॐ अप्सरायै
प्रेम लोचना काण्डु नमः फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ अप्सरायै प्रेम लोचना काण्डु नमः पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि।
ॐ अप्सरायै प्रेम लोचना काण्डु नमः अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि।
ॐ
अप्सरायै प्रेम लोचना काण्डु नमः दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि।
ॐ अप्सरायै
प्रेम लोचना काण्डु नमः मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि।
ॐ अप्सरायै प्रेम लोचना काण्डु नमः।
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें। पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।
।। “ॐ क्लीं प्रेम लोचना अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट”।।
यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें। “ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ” यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे। अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं। पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
Mantra Energized Pramlochna Yantra Mala Mantra
प्रम्लोचा अप्सरा तंत्र साधना –
सर्वप्रथम प्रम्लोचा अप्सरा मंत्र सिद्ध यंत्र व माला लेकर किसी भी शुक्रवार से साधना शुरू करें.
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